Shani Dev | शनि देव | शनि जयंती | Shani Jayanti | शनि चालीसा | Shani Chalisa

Shani Dev | शनि देव | शनि जयंती | Shani Jayanti | शनि चालीसा | Shani Chalisa



Shani Dev is one of the most popular deities that the Hindus pray to ward off evil and remove obstacles.Shani literally means the “slow-moving-one”. According to myths, Shani oversees the "dungeons of the human heart and the dangers that lurks there."

He is also known as Saura (son of sun-god), Kruradris or Kruralochana (the cruel-eyed), Mandu (dull and slow), Pangu (disabled), Saptarchi (seven-eyed) and Asita (dark).

Hindus accord immense importance to the planets, and Saturn or Shani is one such planet which they fear the most for ill-luck. Anyone born under his influence is believed to at risk.

Shani Chalisha:-

शनि चालीसा

दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल कारन कृपाल.
दीनन के धुक धूर करी, खीजी नाथ निहाल.
जीजी श्रीशनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज
करहु कृइया हे रविताने, राखहु जन की लाज.



जयाठी जयाठी शनि दयाला, करत साधा भक्थान प्रतिपाला.
चारी भुजा, थानु श्याम विराजे, माथे रतन मुकुट छवि चाजय.
परम विशाल मनोहर भाला, टेडी दृष्टि भृकुटी विकराला.
कुंडल श्रवण चमाचम चमके, हिये माल मुक्थान मणि धमके.
कर में गधा त्रिशुल कुतारा, पल बिच कराइ अरिही संहार.
पिंघल, कृष्णो, छाया, नंधन, यम, कोणस्थ, रौद्र, धुक भंजन.
सौरी, मंद शनि, धष नाम, भानु पुत्र पूजहिं सब कामा.
जापर प्रबु प्रसन हवाएँ झाहीं, रख्हूँ राव कराइ शान माहीं.
पर्वथ्हू तरुण होई निहारत, थ्रुन्हू को पर्वत करी दारात.
राज मिलत बन रामहिं धीन्ह्यो, कैकेयिहू की माथि हरी लिन्हियो.
बन्हू मे मर्ग कपट धिकायी, माठु जानकी गई चुराई.
लाकन्हीं शक्ती विकल करी डरा, मचिगा ढल मे हाहाकार.
रावण की घथी-माथि बुराई, रामचंद्र सो बैर बडाई.
धियो कीट करी कंचन लंका, बजी बजरंग बियर की डंका.
नृप विक्रम पर ठुहीं पगु धरा, चित्र मयूर निगली गई हारा.
हार नौलाक्का लाग्यो चोरी, हाथ पैर डरवायो थोरी.
भारी धष निकृष्ट धिकायो, तेल्हीं घर खोल्हू चलवायो.
विनय राग दीपक माह खिन्हो, तब प्रसन्न प्रभु हवाई सुख धीन्हो.
हरिश्चंद्र नृप नारी भिकानी, आपहुं भरें दोमे गर पानी.
तस्से नल पर दशा सिरानी, भूंजी-मीन कूद गई पानी.
श्री शंकर्हीं गह्यो जब जाई, पार्वाठी को साथी कराई.
थानिक विलोकत ही करी रीसा, नभ उडी गयो गौरिसुत सीसा.
पांडव पर भय दशा तुम्हारी, बची द्रौपधी होती उधारी.
कौरव के बी गाठी माथि मार्यो, युद्घ महाभारथ करी दरयो.
रवि कह मुख म्हण धरी थाथ्कला, लेकर कूधि पर्यो पाताला.
सैश देव-लखी विनती लायी, रवि को मुख थे धियो चुदाई.
वाहन प्रभु के साह सुजाना, जग धिगाज गधार्भ म्रघ स्वाना.
जम्बुक सिंह आधी नख धरी, सो फल ज्योथिश कहत पुकारी.
गज वहां लक्ष्मी गृह आवै, हाय थे सुख सम्पथी उपजावे.
गधार्भ हानि कराइ बहु काजा, सिंह सिद्ध कर राज समाज.
झाम्बुक बूढी नष्ट कर दरी, मर्ग धे कष्ट प्राण संघारे.
जब आवही प्रबु स्वान सवारी, चोरी आदि होय डर भारी.
थैशी चारी चरण यह नाम, स्वर्ण लोह चान्धी अरु तामा.
लौह चरण पर जब प्रबु आवें, दान जन सम्पथी नाश्ता करावें.
समता ताम्र रजत शुभकारी, स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी.
जो यह शनि चरित्र नित गवई, कबहू न दशा निकृष्ट सथावाई.
अध्बुथ नाथ धिकवैन लीला, करें शत्रु के नाशी भली ढीला.
जो पुन्दिथ सुयोग्य बुलवाई विध्य्वाथ शनि ग्रह शान्ति करायी.
पीपल जल शनि दिवस चदवाथ, दीप धान दी बहु सुख पावत.
कहत राम सुन्धर प्रबु दस, शनि सुमिरत सुख होठ प्रकाश.

II दोहा II

पाठ शनिचर देव को, को हूँ विमल तैयार.
करत पाठ चालीस दिन, हो भवः सागर पार